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त इदु॒ग्राः शव॑सा धृ॒ष्णुषे॑णा उ॒भे यु॑जन्त॒ रोद॑सी सु॒मेके॑। अध॑ स्मैषु रोद॒सी स्वशो॑चि॒राम॑वत्सु तस्थौ॒ न रोकः॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ta id ugrāḥ śavasā dhṛṣṇuṣeṇā ubhe yujanta rodasī sumeke | adha smaiṣu rodasī svaśocir āmavatsu tasthau na rokaḥ ||

पद पाठ

ते। इत्। उ॒ग्राः। शव॑सा। धृ॒ष्णुऽसे॑नाः। उ॒भे इति॑। यु॒ज॒न्त॒। रोद॑सी॒ इति॑। सु॒मेके॒ इति॑ सु॒ऽमेके॑। अध॑। स्म॒। ए॒षु॒। रो॒द॒सी। स्वऽशो॑चिः। आ। अम॑वत्ऽसु। त॒स्थौ॒। न। रोकः॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:66» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करके कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (धृष्णुषेणाः) दृढ सेनावाले (शवसा) बल से (उग्राः) तेजस्वी (उभे) दोनों (सुमेके) सुन्दर रूपवाले (रोदसी) आकाश और पृथिवी को (युजन्त) युक्त होते हैं (अध) तदनन्तर (स्म) ही (एषु) इन (अमवत्सु) प्रशंसित गृहवालों में (रोदसी) आकाश और पृथिवी के बीच (स्वशोचिः) अपनी दीप्तिवाला विद्युत् अग्नि (आ, तस्थौ) अच्छे प्रकार स्थित है और (न) नहीं (रोकः) शब्दायमान है (ते) वे सब (इत्) ही सुखी होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य बिजुली और पृथिवी की विद्या को लेकर दृढ़ सेनावाले होते हैं, उनको शत्रुजन रोक नहीं सकते तथा जो उत्तम घरों में निवास करते हैं, वे प्रकाशित बुद्धिवाले होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कृत्वा कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

ये धृष्णुसेनाः शवसोग्रा उभे सुमेके रोदसी युजन्ताऽध स्मैष्वमवत्सु रोदसी स्वशोचिरा तस्थौ न रोकोऽस्ति ते इत्सुखिनो जायन्ते ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (इत्) एव (उग्राः) तेजस्विनः (शवसा) बलेन (धृष्णुषेणाः) धृष्णुर्दृढाः सेना येषां ते (उभे) (युजन्त) युञ्जते (रोदसी) द्यावापृथिव्योः (सुमेके) सुखरूपे (अध) अथ (स्म) एव (एषु) (रोदसी) द्यावापृथिव्योः (स्वशोचिः) स्वं शोचिस्तेजो यस्य (आ) (अमवत्सु) अमाः प्रशस्तानि गृहाणि विद्यन्ते येषु (तस्थौ) तिष्ठति (न) निषेधे (रोकः) शब्दायमानः ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्युतः पृथिव्याश्च विद्यां गृहीत्वा दृढसेना जायन्ते तेषां निरोधं कर्तुं शत्रवो न शक्नुवन्ति य उत्तमेषु गृहेषु निवसन्ति ते प्रकाशितप्रज्ञा जायन्ते ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्युत व पृथ्वीची विद्या ग्रहण करून दृढ सेना बाळगतात त्यांना शत्रू रोखू शकत नाहीत व जी माणसे उत्तम गृहात निवास करतात त्यांची बुद्धी प्रकाशमान होते. ॥ ६ ॥